गुरु तेग बहादुर जी की एक महत्वपूर्ण घटना {Play Script Writing} 500+ शब्दों में

गुरु तेग बहादुर जी की एक महत्वपूर्ण घटना {Play Script Writing} 500+ शब्दों में

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चलिए शुरू करते हैं…

गुरु तेग बहादुर जी की एक महत्वपूर्ण घटना {Play Script Writing}

हमारे देश को हमेशा से ऐसे महान महापुरुषों की जरूरत रही है जिनके बलिदान हम पूरे मानव समाज को अपने प्राण त्यागने के लिए प्रेरित करते हैं.

इन्हीं महापुरुषों में एक महान बलिदानी गुरु तेग बहादुर जी थे.

गुरु तेग बहादुर जी सिखों के 9 वें गुरु थे.

यह गुरु हरगोबिंद साहिब जी के सबसे छोटे बेटे थे, इन्हें सिखों में कोहिनूर हीरे के रूप में जाना जाता है.

1 अप्रैल 1621 में एक बच्चा अमृतसर में जन्म लेता है जिसका नाम त्यागमल रखा गया था.

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जब त्यागमल 14 वर्ष के थे तभी इन्होंने मुगलों से हुए युद्ध में भाग लिया.

वह अपने पिताजी के साथ युद्ध भूमि में गए और अपनी वीरता का परिचय देते हुए मुगलों को पराजित कर दिखाया.

इनके पिता को यह महसूस हुआ कि यह बालक कोई सामान्य बालक नहीं है इसमें तो वीर पुरुष के लक्षण दिखते हैं.

उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर रख दिया जिसका अर्थ “तलवार का धनी” माना जाता है.

अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने कई भाषाएं सीखी जैसे कि गुरुमुखी, हिंदी, संस्कृत और अन्य धार्मिक दर्शन इत्यादि की विद्या ग्रहण कर ली थी.

उन्होंने अपना अधिकांश समय अध्ययन और ध्यान में व्यतीत किया था.

समय बीतता गया और जल्द ही उनका विवाह 1632 में करतारपुर के निवासी माता गुजरी जी से हो गया.

उन्होंने लोगों को जागरूक करने व लोक कल्याण के लिए जगह-जगह की यात्राएं की.

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गुरु तेग बहादुर जी के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना लोगों की धर्म की रक्षा करना है.

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नवंबर 1675 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने उनका सर कलम करवा दिया था.

मुगल शासक औरंगजेब सभी भारतीयों को मुसलमान बनाना चाहता था, वह चाहता था कि भारत पूरी तरह से मुस्लिम राष्ट्र बन जाए.

औरंगजेब द्वारा इस घोषणा के बाद पंडित कृपाराम के नेतृत्व में 500 कश्मीरी पंडितों का एक समूह आनंदपुर साहिब में गुरु तेग बहादुर की मदद लेने के लिए गए थे.

इस पर गुरु तेग बहादुर जी ने कहा “यदि औरंगजेब मेरा धर्म परिवर्तित करा दे तो सभी भारतीय अपना धर्म परिवर्तित कर लेंगे, जाकर कह दो औरंगजेब से”.

यह सुनकर औरंगजेब “गुरु तेग बहादुर जी” का धर्म परिवर्तन करने के लिए तरह-तरह की यातनाएं देना शुरू कर दिया.

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किंतु गुरु तेग बहादुर जी ने कहा कि “मैं अपना सर कटा सकता हूं लेकिन सर झुकाऊंगा नहीं”.

यह सुनकर औरंगजेब ने दिन के उजाले में दिल्ली के चांदनी चौक पर उनका सिर कलम करवा दिया था.

वह एक ऐसे महापुरुष जिन्होंने दूसरों के खातिर अपनी जान न्योछावर कर दिया था.

ऐसे वीर महापुरुष के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटना बलिदान है जो कि उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए दिया था.

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